इत्ता टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊंगा  !
अब अगर और दुआ दोगे  तो मर जाऊंगा !!
ज़िन्दगी मैं भी मुसाफिर हूँ तेरी कस्ती का !!!
तू जहाँ भी कहेगी मैं  उतर जाऊंगा !!!!



कोई दोस्त है न रक़ीब है, तेरा शहर कितना अजीब है !
मै  किसे कहु मेरे साथ चल, यहाँ सब  के सिर पे सलीब है  !! 
यहाँ किसका चेहरा  पढ़ा करू, यहाँ कौन इतना करीब है !!!
वो  जो  इश्क़ था वो जूनून था , ये जो  हिज़्र है ये नसीब है !!!! 



देखिये गर आपने बात न मानी मेरी !
लोग सच्ची नहीं समझेंगे कहानी मेरी !!
सौ क़यामत के बराबर मेरा हर इक पल होगा  !!!
बद्दुआ की तरह गुज़रेगी जवानी मेरी !!!! 


नाकामियां  मिली तो मुक़द्दर से  डर 
पानी की एक बून्द थी जो  समंदर थे  डर गए !
वो मै  नहीं था  वो तेरी  ही गली  के कुछ लोग थे 
जो ज़हर में  बुझे हुए  ख़ज़र  से डर  गए  !!


न हौंसले न  इरादे बदल रहे  हैं लोग 
थके  थके  हैं  मगर फिर  भी  चल रहें  हैं  लोग !
वफ़ा  न  प्यार  न  किरदार  न वसूल  कोई 
न  जाने  कौन  से सांचे  में  ढल  रहे  लोग !! 


आज कल आदमी का ये हाल एक सहमी  सी  हो जैसे  
लोग  यूं  छुप छुप  के प्यार करते हैं  की प्यार करना गुनाह हो जैसे  !!



















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